संस्कृत शिक्षण

विद्या ददाति विनयं विनयाति याति पात्रत्वाम्
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्म तत सुखम् ।।
विद्या विनय प्रदान करती है विनय से पत्रता प्राप्त होती है पात्रता धन मिलता है धन से धर्म और फि सबसे अन्त में सुख मिलता है

टिप्पणियाँ

  1. विद्या का क्षेत्र अति व्यापक है, विद्या को सीमित दायरे में रहकर समझ नहीं सकते हैं अतः इस विषय को समझने के लिए संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन अत्यावश्यक है।

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